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मैं एक परवाना हूँ, अपनी चाहत में शम्मा को जलाना जा

मैं एक परवाना हूँ, अपनी चाहत में शम्मा को जलाना जानता हूँ।
तू लाख लगा इल्जाम मुझ पर,
मैं हर दाग मिटाना जानता हूँ।
न कर इंतज़ार मेरे अश्कों के झरने का,
संगदिल हूं अश्कों को छुपाना जानता हूँ।
ये ना समझ की हस्ती मिट गयी है मेरी,
समंदर की तूफानी लहरों पर रेतीले घरोंदे बनाना जानता हूँ।

लेखक - अंकित पालीवाल परवाना
मैं एक परवाना हूँ, अपनी चाहत में शम्मा को जलाना जानता हूँ।
तू लाख लगा इल्जाम मुझ पर,
मैं हर दाग मिटाना जानता हूँ।
न कर इंतज़ार मेरे अश्कों के झरने का,
संगदिल हूं अश्कों को छुपाना जानता हूँ।
ये ना समझ की हस्ती मिट गयी है मेरी,
समंदर की तूफानी लहरों पर रेतीले घरोंदे बनाना जानता हूँ।

लेखक - अंकित पालीवाल परवाना