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White तगाफुल ए मगरूर मैंने देखा तुम्हें पाने का

White तगाफुल ए मगरूर 

मैंने देखा तुम्हें पाने का ख़्वाब
लेकिन हमेशा मिले मुझे काले गुलाब 
दूर तेरी सोने के पानी चढ़ी महफ़िल से हम चले 
जब हसीन ख़्वाबों से आँखें खुली
कीचड़ में फ़िर थे फंसे 
जज़्बातो ने कि है ख़ुशी से ख़ुदकुशी 
चाहा जब तुमसे इकरार करना ,मिली सिर्फ बेरुखी 
मैं बदल गया हूँ इतना 
अब खुद को भी जनता नहीं 
अब ना तुम रखना राब्ता  कभी 
बेरुखी खामोशी अश्क़ मुफ़्लिसी 
जिंदगी में सबसे बड़ा हादसा यही
माना थी अजब दीवानगी 
लब सिले थे तुम्हारे थी तुम्हें तलब ए खामुशी 
हार गए हम हम सारी बाज़ी 
जला दिया है मैंने दफ़न कर दिया वो माज़ी 
अब उम्र भर के लिए तेरे मेरे दरमियाँ रह जाएगी बस ये ख़ामोशी 
समझा देना अपने चाहने वालों को,जो तंज़ कसते है मुझपे 
इस कलम में है अब वो कुव्वत 
ज़हर भरे तीर से तेज़ अल्फाज़ फेकूंगा सोचा भी नहीं होगा  
मिलेगा नहीं इलाज ज़ख्म होंगे ला इलाज आ रहा है इंकलाब 
तेरे लिए इस कलम में सिर्फ़ भरा है तेज़ाब
एक बार होता है इश्क़ दोबारा नहीं 
तेरे उस गुनाह का होगा कफ़्फ़ारा नहीं
मोहबत क्या तुम मेरी नफरत के क़ाबिल नहीं 
ऐसे के साथ जोड़ दूँ मुस्तकबिल मैं ऐसा पागल नहीं 
अब मोहबतो कि महफ़िल में हम बिल देके बैठे हैं 
तेरे जैसे जाने कितने मुझे दिल देके बैठे हैं

©qais majaz,dark #sad_dp  love poetry for her sad urdu poetry deep poetry in urdu
White तगाफुल ए मगरूर 

मैंने देखा तुम्हें पाने का ख़्वाब
लेकिन हमेशा मिले मुझे काले गुलाब 
दूर तेरी सोने के पानी चढ़ी महफ़िल से हम चले 
जब हसीन ख़्वाबों से आँखें खुली
कीचड़ में फ़िर थे फंसे 
जज़्बातो ने कि है ख़ुशी से ख़ुदकुशी 
चाहा जब तुमसे इकरार करना ,मिली सिर्फ बेरुखी 
मैं बदल गया हूँ इतना 
अब खुद को भी जनता नहीं 
अब ना तुम रखना राब्ता  कभी 
बेरुखी खामोशी अश्क़ मुफ़्लिसी 
जिंदगी में सबसे बड़ा हादसा यही
माना थी अजब दीवानगी 
लब सिले थे तुम्हारे थी तुम्हें तलब ए खामुशी 
हार गए हम हम सारी बाज़ी 
जला दिया है मैंने दफ़न कर दिया वो माज़ी 
अब उम्र भर के लिए तेरे मेरे दरमियाँ रह जाएगी बस ये ख़ामोशी 
समझा देना अपने चाहने वालों को,जो तंज़ कसते है मुझपे 
इस कलम में है अब वो कुव्वत 
ज़हर भरे तीर से तेज़ अल्फाज़ फेकूंगा सोचा भी नहीं होगा  
मिलेगा नहीं इलाज ज़ख्म होंगे ला इलाज आ रहा है इंकलाब 
तेरे लिए इस कलम में सिर्फ़ भरा है तेज़ाब
एक बार होता है इश्क़ दोबारा नहीं 
तेरे उस गुनाह का होगा कफ़्फ़ारा नहीं
मोहबत क्या तुम मेरी नफरत के क़ाबिल नहीं 
ऐसे के साथ जोड़ दूँ मुस्तकबिल मैं ऐसा पागल नहीं 
अब मोहबतो कि महफ़िल में हम बिल देके बैठे हैं 
तेरे जैसे जाने कितने मुझे दिल देके बैठे हैं

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