जहां शोर में भी रूह सुकून पाए, मैं दिल हारी उस गंगा किनारे। उन चंचल बनारसी गलियों में, थकीहरी आंखें मेरी इक शाम निहारे। घाट की बयार छुए जब तन को, खोए मन को फ़िर कौन पुकारे? मणिकर्णिका में मोक्ष का स्वप्न, हैं देखे सब ही "नज़र" गड़ाए। एक मेरी मां मेरे दुख हर लेती, एक गंगा मैया मेरी मैली रूह को पार लगाए। इक शाम गुज़ारो गंगा घाट किनारे, ये अंत आरंभ की कथा सुनाए। नीरस जीवन में ये रस भर देती, है शिव शंभू की नगरी कहलाए। ♥️ Challenge-675 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।