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काश! कोई राब्ता उसका मुझसे भी कभी होता, मेरे नाम स

काश! कोई राब्ता उसका मुझसे भी कभी होता,
मेरे नाम संग लिखा उसका नाम भी कहीं होता।

माना रुक्मिणी है संगिनी कान्हा की कहने को,
मगर राधा सा उसका भी संग आखिर यहीं होता।

लाख पढ़ लो कहानी किसी रिश्ते के बंधन की,
मगर हो आज़ाद उस के जैसा संगम वहीं होता।

जो कभी लौटा ही नहीं मुड़कर वापस इश्क में,
इंतज़ार करते इश्क मुकम्मल शायद यूंही होता।

कैसी कहानी है, मिलकर भी पूर्ण कभी हुई नहीं,
राधा को हासिल नहीं फिर भी अधूरा नहीं होता।

मीरा ने मन में अपना लिया, प्रेम परिमाण समझो,
रुक्मिणी की आस है, उसका नाम भी कहीं होता।
—
(किताब वाला)

©Deepak Mishra 'Kitab Wala'
  Aas - Rukmini ki aas aur Radha sa saath..

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