में जलती लकड़ियों में मिलों । तो गभराना नहीं में जलते दिपक । में मिलों तो भुजा नहीं में रोशनी भी तेरी खातिर कर रहां तु अंधेरों से कभी घबराना नहीं गुज़रते दिनों का #नही_बल्कि #यादगार लम्हों #का नाम #है_जिंदगी