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कतई.. वक्त माँग रहें हो हमसे अब कुछ कह रहें थे ह

कतई..

वक्त माँग रहें हो 
हमसे अब
कुछ कह रहें थे
हम तब
तुमने एक ना सुनी
ना मन की
 ना दिल की
हमें रोता हुआ
बिलखता हुआ
छोड़ दिया
तकदीर के भरोसे
क्या कहां था तुमने
तुम छुट चुके हो
पता है तुम्हें
क्या बीती थी हम पर
ना.....
अब हमें बताना भी नही है
और..
अब हमें सुनना भी नही है
हम ..
चल पड़े है
राह पर हमारे
जो राह हमें
सुकूं देती है
राहत देती है
और तो और
आराम देती है
संपूर्णतः हम
उस राह के हो गये है
बदन का रोम रोम
अब उसी राह के नाम
संपूर्ण श्वास उसी धाम के नाम
तुम...
आना ना लौटकर
हमसे हमारा वक्त माँगने
हम दे नही पायेंगे..
कतई.....

मी माझी.....

©Sangeeta Kalbhor
  #poetrymonth 
कतई..

वक्त माँग रहें हो 
हमसे अब
कुछ कह रहें थे
हम तब
तुमने एक ना सुनी

#poetrymonth कतई.. वक्त माँग रहें हो हमसे अब कुछ कह रहें थे हम तब तुमने एक ना सुनी #शायरी

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