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एक झलक एक झलक जो उसको देखा, देखता ही रह गया । मुख

एक झलक
एक झलक जो उसको देखा,
देखता ही रह गया ।
मुख से कुछ न कह पाया,
अवाक मैं तो रह गया ।

मुस्कान ने उसकी लूटा मुझको,
क्या मैं अपना हाल बताऊँ ।
मेरा दिल न मेरा रहा और,
क्या जाके  मैं रपट लिखाऊँ ।

आँखें थीं ऐसी नशीली,
कि मधुशाला भी फीका पड़ता ।
आँखें तो मेरी तब खुलतीं,
जब उसने पिलाना छोड़ा होता।

उसके केशुओं के आँचल में,
ऐसा मैं तो घिर गया ।
आँखें खुलते- खुलते रह गयीं,
मैं दोबारा सो गया ।

उसके रसभरे होंठों ने,
रसभरी को पीछे छोड़ दिया ।
उसके गालों की लाली ने,
संध्या को पीछे छोड़ दिया ।

उसकी वाणी की नरमी  ने,
ऐसा मुझको जमा दिया ।
बस एक झलक उसको देखा है,
दिवाना मैं तो हो गया ।

ओझल हो गई जब नज़रों से,
मानो नींद से मैं टूट गया ।
लगा ऐसे विरह में उसकी,
शायर मैं तो हो गया ।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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एक झलक

एक झलक जो उसको देखा,
देखता ही रह गया ।
मुख से कुछ न कह पाया,
अवाक मैं तो रह गया ।
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Devesh Dixit

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