आज वक्त को चारोपहर से टटोला जिसमे मिले पुरानी यादों की रद्दी डायरी के कुछ अश्क़ मिले इन यादों से खुद को समेटा तो पाया नकामी ओर उदासियों की आहट तले खुद का वजूद अस्तित्व शांत होता नजर आया तुम तो चले विकसित होने क्या हाथ लगा नाकामी ओर बेजान दिल से जुड़ी अमिट उदासियां इतना कहा खो दिया खुद के वजूद को की हम गुजरे लम्हो के साथ खुद ही नही रहे थोड़ी देर स्तब्ध बेजान खड़ा रहा , आखिर पुराने लिखे उजड़े खतों को टटोला ओर पाया जिस सपनो की आहट से मेरे होशले उड़ा करते थे आखिर वह सपने मिटते नजर क्यू आ रहे है आखिर यह कैसा वक्त का पहर है जहाँ में खुद एक अंधेररो की आहट ले रहा हूं आखिर क्यू में खुद से जुड़ा होना चाहता हूं मेरे लहजे ,मेरे गम ,मेरा खफा छाया आख़िर क्यू , मुझे यू मजबूर कर रहे है कि इन इत्मिनान की मिथ्या ख्वाईशो को दफन किया जाए खुद से किये वादे को क्यू न समेटा जाए क्यू न एक रात अकेले गहरी नींद सोया जाए,,,,,,,, ✒️ @#JASUUU #RAJGURU✒️x ©Jasu Razz Purohit Balera #vacation