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कुछ अनसुलझा सा रहता है दिल में, क्योंकि उम्र ही य

कुछ अनसुलझा सा रहता है दिल में, 
क्योंकि उम्र ही ये ख़्यालो की है, 
ख़्याल किसी को पाने के,
ख़्याल किसी को अपना बनाने के,
ख़्याल किसी के हो जाने के, 
ख़्याल किसी में खो जाने के, 
कुछ ख़्याल एसे भी हैं जिनमें किसी का कोई हिस्सा नहीं,
कुछ ख़्याल अकेले ही ज़िन्दगी बिताने के, 
कुछ ख़्याल एसे भी है जिनमे ना ही कोइ मदहोशिया न ही कोई रूमानियत, 
एसे कुछ ख़्याल जिन्हें लोग बेरंग सा भी कहते हैं, 
यही ख़्याल अक्सर मुझसे सवाल किया करते हैं कि 'क्या एसे ख़्याल रखना सही है ?' ,
क्या किसी के लिए ख्याल ना होना सही है? 
फ़िर एक ख्याल आता है कि कहीं एसे ख्यालो से ज़िन्दगी बेरंग तो न हो जाएगी, 
फ़िर ख्याल आता है कि ज़िन्दगी में रंग भरने के कई और भी तरीके हैं क्या हुआ जो मुझे ज़िस्मानी तरीके में दिलचस्पी नहीं, 
फ़िर एक ख्याल आता है कि 'लोग क्या कहेन्गे? '
उस ख्याल को रौंदता हुआ एक कमबख़्त ख्याल फ़िर आता कि " अरे छोड़ो! कौन लोगो के बारे में सोचता है "
हाय! ये ख़्याल, बड़े नासमझ, नामुराद, बेहया होते हैं, 
इन्हें कौन समखाये की इन ख़्यालो के लिये इस समाज में कोइ ज़गह नहीं है, 
कौन इन्हें बताये कि ये समाज सिर्फ़ मर्दाना और जनाना होना ही जानता है, 
ये समाज इन्सानो को सिर्फ़ दो ही नज़र से देखता है या तो आदमी या औरत और किसी के लिए जगह नहीं, 
पर ये समाज ये नहीं जानता कि ख़्याल तो ख़्याल होते, 
वो बिन पंखों के वो आसमान छू आते हैं, 
सागर में मोती छू आते हैं, 
ये तो सिर्फ़ जज़्बात हैं |
 #MOKSHA#LGBTQ+community
कुछ अनसुलझा सा रहता है दिल में, 
क्योंकि उम्र ही ये ख़्यालो की है, 
ख़्याल किसी को पाने के,
ख़्याल किसी को अपना बनाने के,
ख़्याल किसी के हो जाने के, 
ख़्याल किसी में खो जाने के, 
कुछ ख़्याल एसे भी हैं जिनमें किसी का कोई हिस्सा नहीं,
कुछ ख़्याल अकेले ही ज़िन्दगी बिताने के, 
कुछ ख़्याल एसे भी है जिनमे ना ही कोइ मदहोशिया न ही कोई रूमानियत, 
एसे कुछ ख़्याल जिन्हें लोग बेरंग सा भी कहते हैं, 
यही ख़्याल अक्सर मुझसे सवाल किया करते हैं कि 'क्या एसे ख़्याल रखना सही है ?' ,
क्या किसी के लिए ख्याल ना होना सही है? 
फ़िर एक ख्याल आता है कि कहीं एसे ख्यालो से ज़िन्दगी बेरंग तो न हो जाएगी, 
फ़िर ख्याल आता है कि ज़िन्दगी में रंग भरने के कई और भी तरीके हैं क्या हुआ जो मुझे ज़िस्मानी तरीके में दिलचस्पी नहीं, 
फ़िर एक ख्याल आता है कि 'लोग क्या कहेन्गे? '
उस ख्याल को रौंदता हुआ एक कमबख़्त ख्याल फ़िर आता कि " अरे छोड़ो! कौन लोगो के बारे में सोचता है "
हाय! ये ख़्याल, बड़े नासमझ, नामुराद, बेहया होते हैं, 
इन्हें कौन समखाये की इन ख़्यालो के लिये इस समाज में कोइ ज़गह नहीं है, 
कौन इन्हें बताये कि ये समाज सिर्फ़ मर्दाना और जनाना होना ही जानता है, 
ये समाज इन्सानो को सिर्फ़ दो ही नज़र से देखता है या तो आदमी या औरत और किसी के लिए जगह नहीं, 
पर ये समाज ये नहीं जानता कि ख़्याल तो ख़्याल होते, 
वो बिन पंखों के वो आसमान छू आते हैं, 
सागर में मोती छू आते हैं, 
ये तो सिर्फ़ जज़्बात हैं |
 #MOKSHA#LGBTQ+community