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साँप के आलिंगनों में मौन चंदन तन पड़े हैं सेज के

साँप के आलिंगनों में 
मौन चंदन तन पड़े हैं 
सेज के सपनों भरे कुछ 
फूल मुर्दों पर चढ़े हैं
-----------------------------
स्वप्न के शव पर खड़े हो 
माँग भरती हैं प्रथाएँ 
कंगनों से तोड़ हीरा 
खा रहीं कितनी व्यथाएँ 
-------------------------------
जो समर्पण ही नहीं हैं 
वे समर्पण भी हुए हैं 
देह सब जूठी पड़ी है 
प्राण फिर भी अनछुए हैं

- भारत भूषण

©deepak sharma कल के पर्व की स्टेटस और स्टोरीज देखकर भारत भूषण जी कविता के कुछ अंश 😄🤪
साँप के आलिंगनों में 
मौन चंदन तन पड़े हैं 
सेज के सपनों भरे कुछ 
फूल मुर्दों पर चढ़े हैं
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स्वप्न के शव पर खड़े हो 
माँग भरती हैं प्रथाएँ 
कंगनों से तोड़ हीरा 
खा रहीं कितनी व्यथाएँ 
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जो समर्पण ही नहीं हैं 
वे समर्पण भी हुए हैं 
देह सब जूठी पड़ी है 
प्राण फिर भी अनछुए हैं

- भारत भूषण

©deepak sharma कल के पर्व की स्टेटस और स्टोरीज देखकर भारत भूषण जी कविता के कुछ अंश 😄🤪