सूखे फूल लहरों के थपेड़े सह कर बुंद बनकर रह गया किताबों की उम्र ढका कर,बीच का समुंदर उफनता रह गया सुखे फुल रेत से चुर चुर होकर भी, आंखों में वही बुंद बहाता रह गया खुली क़िताब तो,वरख दर वरख आज वहां सुध-बुध गंवा दिया हर एक गलियारों में उफ़ान के साथ हलचल सी , उसपर बिखरे मोतीयों ने धड़कने बढ़ाकर डुबो दिया एक होती लहरों ने, मुझे मुझसे मिलाने, उसी खुशबू के साथ किनारो तक आते-आते सुखा,भिगो दिया...