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झंकृत कर दिल के तार हरजाई क्यूँ किया पलटवार दुनि

झंकृत कर दिल के तार 
हरजाई क्यूँ किया पलटवार 
दुनिया भर के क्या ग़म कम थे 
जो तूने भी किया दिल तार तार
करके टुकड़े-टुकड़े अरमानों का 
अब क्यूँ रोता है जार-जार 
सितम देकर फरियादी न बन 
तू ही है जो चाकू पर चढ़ाया था धार
धार्मिक न बन जालिम 
अब तेरे प्रेम का उतार फेंका है हार ।

रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिक सुरक्षित है|

"प्रतिभा पाण्डेय" चेन्नई 
12/7/2023

©Pratibha Pandey
  #KhoyaMan प्रतिभा पाण्डेय

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