वो तेरे इत्र की खुशबू मेरे डायरी के पन्नों में आज भी महकती है... उस रोज़ जब तुमने मेरी डायरी को छुआ था... तेरी उंगलियों की छुअन से मेरे दिल की बस्ती में.. ख्वाओं का एक शहर बस गया था... वो जब-जब पलटती मेरी डायरी के पन्ने.. जमाने से बेखबर मैं पूरा शहर घूम रहा था... नादान था ये दिल करने लगा था चाहतों की हसरतें.. अपने ही आशियाने का पता भूल गया था... पहुंचा जब दिल उनके दिल के दर पर.. वो डायरी का आखिरी पन्ना पलट रही थी... एक अरसे से डायरी के पन्नों को उनकी उंगलियों ने नहीं छुआ.. फिर भी न जाने क्यों वो तेरे इत्र की खुशबू मेरे डायरी के पन्नों में आज भी महकती है... M.Mirza # Shayari # wo tere ittar ki khushboo # Books #Books