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रखती नहीं क्लेश मन में, सबको सौम्या बनाती धरती। स

रखती नहीं क्लेश मन में, सबको सौम्या  बनाती धरती।
सहकर आघात  हृदय पर, सबकी क्षुधा  मिटाती धरती।
बंजर ना होता माँ का दिल, कुछ ना कुछ उगाती धरती।
मित्र या शत्रु  अंत समय में, सबको गले  लगाती धरती। CPPR-10
साहित्य कक्ष 2.0 

आप सभी का स्वागत 💐 है अनुशीर्षक में

✍️चार(4) पंक्ति में रचना Collab करें
        
🅽🅾🆃🅴 - अगर कोई  रचनाकार नियमों और शर्तों को  ध्यान में रखकर Collab नहीं करता है। तो उसकी रचना को हम प्रतियोगिता में सम्मिलित करने में असमर्थ रहेंगे।
रखती नहीं क्लेश मन में, सबको सौम्या  बनाती धरती।
सहकर आघात  हृदय पर, सबकी क्षुधा  मिटाती धरती।
बंजर ना होता माँ का दिल, कुछ ना कुछ उगाती धरती।
मित्र या शत्रु  अंत समय में, सबको गले  लगाती धरती। CPPR-10
साहित्य कक्ष 2.0 

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✍️चार(4) पंक्ति में रचना Collab करें
        
🅽🅾🆃🅴 - अगर कोई  रचनाकार नियमों और शर्तों को  ध्यान में रखकर Collab नहीं करता है। तो उसकी रचना को हम प्रतियोगिता में सम्मिलित करने में असमर्थ रहेंगे।