सुनो एक बात मैं सबको यहां अब बोलने आया, दबा था राज़ जो दिल में उसे मैं खोलने आया। बँधे थे बाल उसके तब तलक खामोश बैठा था, खुली जुल्फें तो दिल का हाल उसको बोलने आया । निहारा शाम तक रस्ता, पलक झपकी न इक पल को, बड़ी लंबी सी चिठ्ठी ले के घर फिर डाकिया आया । न साकी था, न मधुशाला के दरवाजे पे कोई था, शराबी था नशे में चूर उसको क्या नज़र आया ! बड़ा सहमा था सूखे खेत को बेज़ार करके मैं, मगर इक अब्र को देखा तो मुझको हौसला आया । मुझे मालूम हुआ ऐसा कि घर पर माँ अकेली है, तो दुनिया छोड़ कर सारी मैं अपने घर चला आया । शुभम सक्सेना 'शुभ'✍️ ©Shubham Saxena सुनो एक बात मैं सबको यहां अब बोलने आया, दबा था राज़ जो दिल में उसे मैं खोलने आया। बँधे थे बाल उसके तब तलक खामोश बैठा था, खुली जुल्फें तो दिल का हाल उसको बोलने आया । निहारा शाम तक रस्ता, पलक झपकी न इक पल को, बड़ी लंबी सी चिठ्ठी ले के घर फिर डाकिया आया ।