Meri Mati Mera Desh अकेला मेघो की गर्जना ये; क्या नूर बन जाऊं? लगती कहाँ चिंगारी अब यहाँ ? रात्रि में कैसे प्रभात बन जाऊं ? चलती है कश्ती यहाँ, जरा धीरे; बेड़िया, कैसे पार कर जाऊं ? कहते वो, अकेले हो तुम ; भला क्या, अब रार कर जाऊं ? फूलों में महकना भी; देख उन्हें क्या मंडराना सीख जाऊं ? जन्नत की इन झूठी लकीरो में- क्या जिंदगी को सहलाना भूल जाऊं ? नजरंदाजियो का यहां खौफ भी लकीरें उनकी, क्या संभालने को मिट जाऊं ? अभी हूँ मैं, यहाँ अकेला ? क्या अब महफ़िल को आनंद लुटाना भी भूल जाऊं ? ©Saurav life #MeriMatiMeraDesh #sauravlife