....... भूख..... बेसुध सी थी वो एक टक जाने क्या देखती कूड़े के ढेर में ढूँढती कुछ तन ढका था फटे कपड़ो से मैले ऐसे जैसे उसका रंग हो चुका था चप्पल पैरों में तो कभी नसीब ना थी पैरों के घाव औऱ फटी एड़ियां ये बयाँ कर रही थी भूख से दुबला तन जाने कब साथ छोड़ दे अपना कोई भी भीड़ में दूर तक ना था तभी एक छुट् भईये नेता की नजर उसपे पड़ी अपनी पार्टी का झंडा उसने उसे भी थमा दिया भीड़ में एक चेहरा उसे भी बना दिया कूदती फुदकती वो भी रैली में गई अब उसे सब अपने से लगने लगे जब नेता जी जिंदाबाद के नारे लगने लगे। बड़े बड़े वादे कर नेता जी जब हवा में ओझल हुए तभी किसी ने एक ब्रेड पकोड़ा उसे भी दे दिया उसने तुरंत पार्टी का झण्डा फेंक उसे लपक लिया क्योंकि अब उसे वो मिल चुका था जिसे वो कूड़े के ढेर में ढूँढ़ रही थी फर्क सिर्फ इतना था कि कूड़े के ढेर से उसे फेंकी बासी रोटी मिलती और शायद आज चुनावी झण्डा उसे ब्रेड पकोड़ा दे गया। Composed by :- B.S.Rautela (B.S.R.) Rudrapur 04/04/2019 8:00 PM