कुछ खास थे तो कुछ दिल के पास थे खाली कोई नही सब अपने हाथ मे ग्लास लिये बैठे थे । क्यों न बैठते महफ़िल भी तो गम मिटाने की लगी थी सब अपनी अपनी कहानिया सुना रहे थे हम शांत हो कर कही अपने कही उसके नाम पर दो-दो जाम लगा रहे थे। नशे में चूर आग के धुएं मैं उसको देख रहे थे। क्यों न बैठते महफ़िल भी तो गम मिटाने की लगी थी जाम के नाम पर आख़िर शर्त भी उसको को भुलाने की जो लगी थी। Sachika Gupta Ganesh Murthy Sanjay Kumar Sakshi Sachan Sandeep Singh