जब जी में जो कुछ आता है, जो रूचता है, जो जाँचता है, उसके अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त करने की अभिलाषा होती है। पर वैसी परिस्थितियाँ मिल ही जाँय इसका कोई ठिकाना नहीं। अभिलाषा