यज्ञ में सबसे श्रेष्ठ जप को माना गया है जो किसी मंत्र का ही होता है 9 अक्षरों वाला होने के कारण इसे उन्नाव मंत्र कहा गया है सामान्यता अन्य मंत्रों के जप में पहले ओम लगाया जाता है किंतु इसके पहले नहीं क्योंकि इसके ऊपर अंबर 13 बीच अक्सर स्वयं प्रणव यानी ओम है अलबत्ता इसी मंत्र के पूर्व में पश्चात गायत्री मंत्र का संपुष्टि आवश्यक है ऐसा इसलिए है इस शक्ति मंत्र में विद्युतीय परखता होती है और थोड़ी भी प्रतीकात्मक असावधानी होने पर हानि की आशंका रहती है गायत्री का संपुष्टि नियामक का काम करता जबकि तीन प्रकारों बेकरी ओपा अंशु और मानसिक नयन वर्णन मस्तिक ही उचित होता है जो ध्यान सहित हो इस मंत्र का अर्थ है मैं ब्रह्मविद्या पाने के लिए आपका धंधा करता हूं आप आ विद्या की ग्रंथ खोलकर विद्या का प्रकाश फैला दें ध्यान मां की श्री स्वर्गीय के किसी अंग अथवा तीन पुष्टि पर हो दोनों भौहों के बीच का स्थान त्रिपुटी कहलाता है जहां मन अपने रश्मि पूंजी के साथ सूक्ष्म रूप से रहता है 64 मनो रश्मिया यहां से प्रकाशित होती है ©Ek villain #यज्ञ में सबसे श्रेष्ठ जप को माना जाता है #Navraatra