सांस लेने और छुटने के दरमियान जो थोड़ा ठेहराव सा रेहता है.... तेरा तसवूर वहीं पे कहीं रेहता हैं.... नम आंखों के बंध होते ही तेरा खयाल भी निखर जाता हैं... जिक्र तुम्हारा पाके धड़कनों का मिज़ाज बेकरार सा रेहता है... सांस लेने और छुटने के दरमियान जो थोड़ा ठेहराव सा रेहता है ... ऐसा ही अक्सर दिल-ए-आलम रेहता हैं....... .............' ઈશ ' રમેશ માતંગ