वो सिम्ते नबि का ख़सारा तो देखो ज़रा से ज़खम पे लूटा दी ज़मीं थी मुझे मार कर क्या करोगे मुजाहिद जला मौसिकी को जो कायर नहीं थी! #dharmuvach✍🏻 (पुरी नज़्म captions में पढ़े 🙏) जीवन की मधुशाला में... वफ़ा की वज़ह से अलग दुश्मनी थी वो आबाद थी और अज़ीज़-ए-गनी थी कोई खुल्द खासा खुदाया मुनव्वर नफिल -ए- गनीमत, नक़ल से बनी थी। अज़ानो की मानो खुदा पहचानो