वो लड़की क्या-क्या समेटे रखती है अपने भीतर वो लड़की कभी फूल सी खिलती तो कभी धूप सी ढलती है वो लड़की सुकून दूसरे का बनती ग़म ख़ुद के लिए बुनती है वो लड़की सपनों के आकाश में खुलकर उड़ती पर ज़िन्दगी भर ख़ुद में सिमटती है वो लड़की खुदगरज दुनिया से बेशर्त मोहब्बत करती है वो लड़की उफ़! वो लड़की क्यूँ बनी है वो लड़की? #रूपम अहलावत#