कया सब कुछ झूठ था, हा शायद सब कुछ झूठ था, मेरे कंधो पर तेरा यू बेफिक्र होकर सो जाना भी कया झूठ था, और तेरी निगाहे खुलते ही मुझे देख मुस्कराना भी झूठ था, तेरी जुलफो को मेरे चेहरे पे कया वो सजाना भी झूठ था, और उन पलो के गुजरने के दरमिया तेरा वो मुझमे बिखर जाना भी झूठ था, मेरी सांसो का तेरी सांसो का वो टकरा कर मदहोश हो जाना भी झूठ था, वो झुकी पलको से तेरे लबो का मेरे लबो से छू जाना भी झूठ था, और मुझसे लिपट तेरा यू शीसे की तरह टूट जाना भी झूठ था, अपने फासलो से यू खौफजदा हो तेरी पलको का भीग जाना भी झूठ था, छोटा सा ही तो जहा था मेरा और इस छोटे से जहा मे यू बेकदर बेपनाह हो जाना भी झूठ था, तेरे सच की सच्चाई मे चूपे तेरे हर लफ्ज का हर एक वजूद भी झूठ था, और तेरे उन लफजो की बूंदो का मेरे जहन पे बरस जाना भी झूठ था, और मे नादान तेरे हर कहे अनकहे लफजो को खुदा की कायनात की तरह सच समझ बैठा, और ना जाने कयू कब कैसे तुझे ही हमनसी समझा और सच्चाई का समंदर बना बैठा, कयूकि मे नजर नही नजरिये से देखने लगा था ,तेरा चेहरा नही तेरे चेहरे मे छुपी मासूमियत से मोहबत करने लगा था, लेकिन वो भी झूठ था कयूकि साला तू खुद एक झूठ था, और बस तू एक झूठ था