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देश की अर्थव्यवस्था का स्तम्भ हूँ, पूंजीपतियों की

देश की अर्थव्यवस्था का स्तम्भ हूँ,
पूंजीपतियों की पूंजी का  बृहत स्त्रोत हूँ!
फिर भी बेबस मज़बूर क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मज़दूर हूँ !

विडम्बना है सहस्रवादियों से,
समाज का शोषित वर्ग हूँ।
कैसे करूँ लॉकडाउन का पालन,
नभ के नीचे सोना ही मेरी दस्तूर है!
पुलिस की लाठी सहने को मज़बूर क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मज़दूर हूँ!

दो वक़्त की रोटी  खातिर,
प्रवासी बनने को लाचार हूँ।
अमीरों के लिए तो पानी व हवाई जहाज!
पर मैं तो पटरी पर कट कर,
घर जाने को मज़बूर हूँ!
बेकसूर को निःसहाय पीड़ा क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मजदूर हूँ! "क्योंकि मैं गरीब मजदूर हूँ"
Untold Voice of the every migrant worker. 
#migrantworkers #coronavirus #labourpain #poem #stayhome #staysafe   #poetry  
#kavita
देश की अर्थव्यवस्था का स्तम्भ हूँ,
पूंजीपतियों की पूंजी का  बृहत स्त्रोत हूँ!
फिर भी बेबस मज़बूर क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मज़दूर हूँ !

विडम्बना है सहस्रवादियों से,
समाज का शोषित वर्ग हूँ।
कैसे करूँ लॉकडाउन का पालन,
नभ के नीचे सोना ही मेरी दस्तूर है!
पुलिस की लाठी सहने को मज़बूर क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मज़दूर हूँ!

दो वक़्त की रोटी  खातिर,
प्रवासी बनने को लाचार हूँ।
अमीरों के लिए तो पानी व हवाई जहाज!
पर मैं तो पटरी पर कट कर,
घर जाने को मज़बूर हूँ!
बेकसूर को निःसहाय पीड़ा क्यों?
क्योंकि मैं गरीब मजदूर हूँ! "क्योंकि मैं गरीब मजदूर हूँ"
Untold Voice of the every migrant worker. 
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