सब कुछ बिखर गया उसी शख्श के साथ जो खुद मे समेट कर रखता था वो मुझे,,, आज दूर- दूर तक फैला हुआ मे किसी मंजर की तरह,, जिन्हे संभाल कर रखा था बरसों से एक -एक सब सपने निकल गए मेरे हाथों से जैसे हाथ से सरकती बालू रेत की तरह,,, आज जमाने की नजरो में सब कुछ है पास मेरे पर मे बंधा हूँ उसकी यादों में आज ज़िंदगी बसर हो रही है ऐसे जैसे कोई पेड़ से बंधे जानवर की तरह,,, ©Omidada Nagor #piano