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"रात की परछाईं" उसने कलाई घुम

                    "रात की परछाईं"

उसने कलाई घुमाई और समय देखा, रात के 11 बज गये थे। दफ्तर के काम मे वो इतना व्यस्त हो चुकी थी कि उसे ध्यान ही नहीं गया कि अब बस पकड़ने के लिए मेन रोड तक पैदल ही जाना होगा, क्योंकि ऑटो 10.30 को चलना बंद कर देते हैं। 
      तभी एक आवाज आयी- 
"राधा, मैं छोड़ दूं तुम्हें?"- आशीष ने पूछा ।
'नहीं सर आपको वक्त लगेगा,मैं चले जाऊंगी' "रात की परछाईं"

उसने कलाई घुमाई और समय देखा, रात के 11 बज गये थे। दफ्तर के काम में वो इतना व्यस्त हो चुकी थी कि उसे ध्यान ही नहीं गया कि अब बस पकड़ने के लिए मेन रोड तक पैदल ही जाना होगा, क्योंकि ऑटो वाले तो 10.30 को ही चलना बंद कर देते हैं। 
        तभी एक आवाज आयी- 
"राधा, मैं छोड़ दूं तुम्हें?"- आशीष ने पूछा ।
'नहीं सर आपको वक्त लगेगा,मैं चले जाऊंगी, आप परेशान ना हो' इतना कहकर राधा अपने बैग में टेबल पर रखा जरूरी सामान भरी और हड़बड़ाहट में दफ्तर की सीढ़ियां उतरने लगी। 
        इसी हड़बड़ाहट में उसकी
                    "रात की परछाईं"

उसने कलाई घुमाई और समय देखा, रात के 11 बज गये थे। दफ्तर के काम मे वो इतना व्यस्त हो चुकी थी कि उसे ध्यान ही नहीं गया कि अब बस पकड़ने के लिए मेन रोड तक पैदल ही जाना होगा, क्योंकि ऑटो 10.30 को चलना बंद कर देते हैं। 
      तभी एक आवाज आयी- 
"राधा, मैं छोड़ दूं तुम्हें?"- आशीष ने पूछा ।
'नहीं सर आपको वक्त लगेगा,मैं चले जाऊंगी' "रात की परछाईं"

उसने कलाई घुमाई और समय देखा, रात के 11 बज गये थे। दफ्तर के काम में वो इतना व्यस्त हो चुकी थी कि उसे ध्यान ही नहीं गया कि अब बस पकड़ने के लिए मेन रोड तक पैदल ही जाना होगा, क्योंकि ऑटो वाले तो 10.30 को ही चलना बंद कर देते हैं। 
        तभी एक आवाज आयी- 
"राधा, मैं छोड़ दूं तुम्हें?"- आशीष ने पूछा ।
'नहीं सर आपको वक्त लगेगा,मैं चले जाऊंगी, आप परेशान ना हो' इतना कहकर राधा अपने बैग में टेबल पर रखा जरूरी सामान भरी और हड़बड़ाहट में दफ्तर की सीढ़ियां उतरने लगी। 
        इसी हड़बड़ाहट में उसकी