कदे हरे-भरे दरख्त वांग हुंदे सी असी, हवा संग झुमदे सी असी, परिंदया वांग उड़दे सी असी, नाचढे टपदे दिन बिताउंडे सी असी, ज़िन्दगी ने इहो जेहा रुख बदलिया, सुक्खे पतेया वांग रूल गए आ, दर-दर दी ठोकर खा रहे आ, बेजान शाखा वांग रह गए आ हुन इको ही आस आ उस रब तो, ओह मिह बरसावेगा, सुखिया शाखावा विच जान पावेगा, ज़िन्दगी नु फिर तो खुशहाल बनावेगा, मेरी ज़िन्दगी विच फिर सावन लौट आवेगा, इह "पंकज" रब दा लख-लख शुकर मनावेगा।। दरख्त- पेड़ वांग-उसकी तरह मिह-बारिश कदे हरे-भरे दरख्त वांग हुंदे सी असी, हवा संग झुमदे सी असी, परिंदया वांग उड़दे सी असी, नाचढे टपदे दिन बिताउंडे सी असी,