योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || ४७ || भावार्थ समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, अपने अन्तःकरण में मेरे विषय में सोचता है और मेरी दिव्य प्रेमाभक्ति करता है वह योग में मुझसे परम अन्तरंग रूप में युक्त रहता है और सबों में सर्वोच्च है | यही मेरा मत है | योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || ४७ || योगिनाम् – योगियों में से; अपि – भी; सर्वेषाम् – समस्त प्रकार के; मत्-गतेन – मेरे परायण, सदैव मेरे विषय में सोचते हुए; अन्तः-आत्मना – अपने भीतर;श्रद्धावान् – पूर्ण श्रद्धा सहित; भजते – दिव्य प्रेमाभक्ति करता है; यः – जो; माम् – मेरी (परमेश्र्वर की); सः – वह; मे – मेरे द्वारा; युक्त-तमः – परम योगी; मतः – माना जाता है |