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उड़ता जा तू आसमान में बनकर एक परिंदा, अरमानों के प

उड़ता जा तू आसमान में बनकर एक परिंदा,
अरमानों के पंख लगाकर दिखा की तू है ज़िंदा।
डर से ज़िद की शर्त लगा ले गम की माया छोड़,
उंगली में आकाश उठाकर बन जा तू गोविंदा।
एक बगल में धूप उठा ले एक बगल सब छइया,
जैसे लेकर पनघट जाती मटके तेरी मईया।
हो ऊंची आवाज तेरी गर है सच्चा  विश्वास,
तू ही तेरी धारा बन जा तू ही तेरा खेवईया।
क्या पाया जो खोएगा तू क्यों होता शर्मिंदा,
उंगली में अकाश उठाकर बन जा तू गोविंदा।
मां का आंचल पिता की छाया गुरुवर का सम्मान रहे,
उड़ता जाए जहां तलक वो राह तेरा गुणगान कहे,
पग पग तूने धरती नापी कोई न शानी तेरा हो,
नस नस में नशा भलाई का तो दूर सदा शैतान रहे।
जिससे तेरा वजूद है उसकी कभी न करियो निंदा,
उंगली में आकाश उठाकर बन जा तू गोविंदा।

©Ashish Tripathi "kumar"
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