हमारे ज़माने में तो हा याद आया कुछ धुंधला धुंधला सा.... कुछ यादे वो बाते वो समय उजला उजला सा..... हा किया था इजहार.... दे दिया बाहो का हार.... वक्त की रेत से फिसल तुम हो चुके थे किसी के, और मै चुप था पगला सा..... भावनाओ मे बह निकला.... ना जाने क्यों हा कह निकला....रहने लगा कुछ कुछ बदला सा.... कुछ पल प्रीत के..... कुछ पल गीत के.... हो चुके थे तुम मेरे... लगा ऐसे जिंदगी आये जीत के.....मीट गया हो फासला सा.... लबों पर आ रुक जाती... बाते कहने की चूक जाती.... दील की धड़कन जान ली... कह ना पाया वो समझ.... खुद ही कह दी अच्छा था.... सामने तेरे मे तो था हकला सा.... प्रेम का फूल था....खिला और मुरझा गया.... सादगी और महक रोम रोम मे बसा गया.... अमृत सा प्रेम तेरा.... प्रीत अमर कर दे ऐसा हर शाम मुझमे ढला सा.... प्रीत की रीत ना तोड़ू.... किसी और संग कभी नाता ना जोडू.... जिस प्रीत की महक से महक रहा हो जीवन.... ऐसी महक को कैसे छोडु.... खुशी मे तेरी खुशी खोज, ख़ुश हु मै देख हर रोज....अंजान डगर, अंजान दील के कोने मे खुशियों का अमृत रस घोल दू.... खुशियों मे खुशी भर चल पडू मै रहू क्यों बला सा.....राधा कृष्ण सा प्यार रहे अपना रंग जिसका सावला सा.... तेरे ख्याल, तेरी बातो मे तेरी यादो मे खोया रहू,इंतजार रहे हर लम्हे मे... यु बन बैठा बावला सा.... ✍️नितिन कुवादे.... ©Nitin Kuvade #ज़माने