कमाया कुछ, लुटाया कुछ, यहां कहां कोई मेरी तबियत पुछते बैठा है; मतलब कि ये दुनिया है मालिक, पर चलो अच्छा है। चारों पहर थक कर लौटी थी जिंदगी, चौखट पर ही जिम्मेदारी ने पुछ लिया; खाली हाथ लौट आए, क्या ये अच्छा है। नाराज़गी उस शख्स की जायज़ है, जिसने हंसती हुई तस्वीर बनवाई थी; घर छोड़ते हुए आंसू चिढ़ा रहे, हंसता है, अच्छा है। ले-देकर यही कुछ खत थे मिल्कियत में मेरे, उनके भी आखिरी श़फ में लिखा था; पढ़ कर जला देना, चलो अच्छा है। मैंने तो रंज ही पढ़ें थे महफ़िल में, ये तो लोग हैं, जो तालियां बजातें हैं; कहते हैं, ये कलम लिखती बड़ा अच्छा है। ©Saurav Ranjan #ArabianNight life says 'अच्छा है '