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ग़ज़ल मेरा तेरे इश्क़ में खोना जैसे कोई खरोश की बा

ग़ज़ल
मेरा तेरे इश्क़ में खोना जैसे कोई खरोश की बात है,
मगर तुझे फर्क न पड़ना बड़े ही खामोश की बात है।

बहुत थोड़ा ही सही मगर कुछ इश्क़ तो है तुझे,
इसे जता न पाना तो बेशक अफ़सोस की बात है।

ऐसा जरूरी नहीं कि हर बार शुरुआत हम ही करे,
तुझसे इतना भी न हो पाना मेरे लिए आक्रोश की बात है।

न जाने क्या-क्या किया तुम्हारे लिए मोहब्बत में,
उसे अहमियत न देना एहसान फरामोश की बात है।

बहुत गुल खिलाए है अपने मन के बगीचे में हमने,
उस गुल का मुरझाना बैचेनी में सरफरोश की बात है।

जाम-ए-इश्क का मजा तो लेने से रहा राही मगर,
बे-दस्तक हुजरे में मत आना वक्त-ए-नोश की बात है। #खरोश = खुशी
#सरफरोश = जान देने को तैयार
#वक्त_ए_नोश = पीने का वक्त
ग़ज़ल
मेरा तेरे इश्क़ में खोना जैसे कोई खरोश की बात है,
मगर तुझे फर्क न पड़ना बड़े ही खामोश की बात है।

बहुत थोड़ा ही सही मगर कुछ इश्क़ तो है तुझे,
इसे जता न पाना तो बेशक अफ़सोस की बात है।

ऐसा जरूरी नहीं कि हर बार शुरुआत हम ही करे,
तुझसे इतना भी न हो पाना मेरे लिए आक्रोश की बात है।

न जाने क्या-क्या किया तुम्हारे लिए मोहब्बत में,
उसे अहमियत न देना एहसान फरामोश की बात है।

बहुत गुल खिलाए है अपने मन के बगीचे में हमने,
उस गुल का मुरझाना बैचेनी में सरफरोश की बात है।

जाम-ए-इश्क का मजा तो लेने से रहा राही मगर,
बे-दस्तक हुजरे में मत आना वक्त-ए-नोश की बात है। #खरोश = खुशी
#सरफरोश = जान देने को तैयार
#वक्त_ए_नोश = पीने का वक्त