ग़ज़ल मेरा तेरे इश्क़ में खोना जैसे कोई खरोश की बात है, मगर तुझे फर्क न पड़ना बड़े ही खामोश की बात है। बहुत थोड़ा ही सही मगर कुछ इश्क़ तो है तुझे, इसे जता न पाना तो बेशक अफ़सोस की बात है। ऐसा जरूरी नहीं कि हर बार शुरुआत हम ही करे, तुझसे इतना भी न हो पाना मेरे लिए आक्रोश की बात है। न जाने क्या-क्या किया तुम्हारे लिए मोहब्बत में, उसे अहमियत न देना एहसान फरामोश की बात है। बहुत गुल खिलाए है अपने मन के बगीचे में हमने, उस गुल का मुरझाना बैचेनी में सरफरोश की बात है। जाम-ए-इश्क का मजा तो लेने से रहा राही मगर, बे-दस्तक हुजरे में मत आना वक्त-ए-नोश की बात है। #खरोश = खुशी #सरफरोश = जान देने को तैयार #वक्त_ए_नोश = पीने का वक्त