बार बार देखती नज़र है क्या करूँ। मोहब्बत का असर है क्या करूँ।। सुकून नही दिल को बिना देखे। न जाने वो किधर है क्या करूँ।। अब चैन कहाँ है आँखों को भी। ढूंढती हमसफर है क्या करूँ।। मै अकेला आशिक़ नही हूँ यहाँ। पीछे पड़ा सारा नगर है क्या करूँ।। सोचता हूँ बोल दूँ दिल की बात। मगर खोने का भी डर है क्या करूँ।। 📝 सतेन्द्र गुप्ता देखती नज़र है क्या करु