#OpenPoetry कल लगती थी, जो राते पियारी आज उन्ही रातों में तन्हा रहता हूँ। हँसता था, मुस्कुराता था मैं भी आज अंधेरो में गुमसुम सा रहता हूँ। मैं इश्क़ का टूटा हुआ हूँ साहब अब खुद में ही खोया रहता हूँ।। महफ़िलो में खिल उठते थे चेहरे मेरे नाम से उन्ही महफ़िलो में आज गुमनाम रहता हूँ जिस घर मे बच्चन गुज़ारा मैंने तेरी खातिर उस घर से मिलों दूर रहता हूँ। मैं इश्क़ का टूटा हुआ हूँ साहब पुरानी खुशियों को दर दर ढूंढता फिरता हूँ।। #OpenPoetry #nojoto