भोर भए पि घर से निकले साँझ होत को आये पि घर काहे न आये.. तीन दिवस बीते रे सखी पि मोसे बोलत नाही जिह्वा अड़ियल मेरे पि की अंतर्मन मोसे बतलाये नित नित सरके सर से चुनरी जैसे पि को ढूंढ़न जाये रोज देख जिस दर्पण में श्रंगार करू वहीं दर्पण अब मोहे खिजाये पि घर को जो न आये देख बाट पिया की मैं खुद ही पि को ढूंढ़न चली पि को ढूंढ़न जो चली आँगन में खडे मेरे पिया मोहे देख मंद मंद मुस्काये अपनी पीर आँचल में बांधे पीर पिया की देखन मैं चली पोंछ स्वेद पि के माथे से मैं पि को मनावन लगी चुनरी उड़ा मोहे मेरी पि मोहे गले से लगाये चुनरी रंगी पिया के रंग पि घर को जो है आये... (राखी राज ) #कोइ भी चन्द नहीं