मुश्किलों के दौर में तो अपनें भी राह से मुड़ जातें है दोष क्या दे वो दरख्त उन्हें सूखें पत्तें खुद झड़ जातें है दिल खोलकर बात करनें की जो देतें है नसीहतें दुख के पलों में वो कितना सिकुड जातें है दोष क्या दे वो दरख्त उन्हें सूखें पत्तें खुद झड़ जातें है सूखें पत्तें