04 विषय - उलझन ----------------------- मैं अग़र कुछ कहूँ तो सम्प्रदायक कहलाऊँगा। मैं अग़र चुप भी रहूँ तो और कुचला जाऊँगा। कब तक इनसे बचने को लब मेरे ख़ामोश रहें! ऐसे क्या मैं न्याय कभी ख़ुद से ही कर पाऊँगा? उनका रसूल-ओ-करम भले दुनिया ने देखा है! पर आम लोगों की आँखों पर पर्दा ही फेंका है। राजनीति वोटों की होती जनहित से अब ऊपर हर पहलू पे जुमला चलता मुद्दा केवल धोखा है। कैप्शन देखें----- 04 विषय - उलझन ----------------------- मैं अग़र कुछ कहूँ तो सम्प्रदायक कहलाऊँगा। मैं अग़र चुप भी रहूँ तो और कुचला जाऊँगा। कब तक इनसे बचने को लब मेरे ख़ामोश रहें! क्या कभी इस क़दर ख़ुद से न्याय करपाऊँगा?