#Pehlealfaaz #Pehlealfaaz क्या लिखूं मेरे पहले अल्फ़ाज़ में। जीवन के ना जाने कितने संघर्षों में जीने का मतलब क्या होता है मैं यही भूल गया। सब से ज्यादा आनंद इंसान को बचपन में होता है पर मुझे तो वहां भी तन्हाइयां मिली। मुझे इस जमाने से रुस्वाइंयों के शिवा कुछ भी ना मिला। जिस उम्र में लडके खेलते कूदते मौज मस्ती करते हैं उस उम्र में मुझे भूख मिटाने कि चिंता थी। इन छोटे- छोटे हाथों से मैंने जितने कलम से ना सीख ली होगी उससे ज्यादा तो चाय के कप धोने पर मालिक से मिले गालियों से मिली होगी। मुझे याद है वो दिन जब घर में खाने के लिए अनाज भी नहीं था। आखिर कोई व्यक्ति कब तक चुप बैठ सकता है मै भी किसी का छोटू बन गया तो किसी का नौकर। पर घर का मालिक जरूर बन गया। वो दिन का 10 रू मिलना और खाना अलग से मेरे लिए और क्या चाहिए बस इतना बहुत था इस छोटू के लिए। जैसे तैसे समय बदलता गया और साथ में मेरा किरदार अब मैं छोटू नहीं किसी का पति और किसी का पिता बन गया। अब तो मुझे और जिम्मेदारी मिल गई । मेरे तो सब अरमान पहले से ही जले पड़े थे पर परिवार के खयाल में परवरिश में कुछ भी कमी ना हो इस लिए मुझे और मेहनत करना पड़ा। हा अब 10 रू के बदले 10000 रू मिलने लगा। क्यूंकि अब मै चाय वाला छोटू नहीं एक होटल में झूठे बर्तन साफ करने वाला रामू बन गया। पर इस तरह से भी मैं खुश नहीं रह सकता मै मेरे परिवार को यह बता भी नहीं सकता कि मै कौन सा काम कर रहा हूं। पर शायद यही मेरी किस्मत में लिखा हो । जमाने की खुशियों से दूर एक वीरान सी जिन्दगी जो किसी सजा से कम नहीं है। आखिर क्यों एक गरीब ही गरीब रहता है। आखिर क्या कारण है कि मुझ जैसे लोग को इज्ज़त या तवज्जो नहीं दी जाती। खैर अपने अतीत में जाना ही मेरा अल्फ़ाज़ है। मेरे द्वारा किया गया संघर्ष ही मेरा अल्फ़ाज़ है। यही मेरा पहला और आखिरी अल्फ़ाज़ है।। सिखाया तूने ही जीने का सलीका मुझको। ऐ जिंदगी, तूने ठोकरें दे दे कर ।। :- सुजीत कुमार मिश्रा प्रयागराज। #Pehlealfaaz #मेरा_पहला_अल्फ़ाज़ #सुजीत_कुमार_मिश्रा