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जिन्दगी भी ये अपनी *******************************

जिन्दगी भी ये अपनी
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जिन्दगी भी ये अपनी क्या क्या सितम ढाती है?
रेत बन कर यह अपनी मुट्ठी से सरक जाती है।
उम्र बीत जाते हैं इसे सँवारने में हरेक शख्स को,
हजारों सवाल जेहन में बिन कहे छोड़ जाती है।
कई मुकम्मल फरियाद भी हैं तुझसे ऐ जिन्दगी!
मौत महबूब को देख के ये यूँ ही बहक जाती है।
बड़ी उल्फत है तुम्हारी हर इक इन्हीं अदाओं में,
तेरी बरकत हो तो ये फिजाँ भी महक जाती है।
कोई तस्वीर बन कर  सीने में उतर जा तू कभी,
वही झूठी कसमें देकर तू दूर से ही मुस्कुराती है।
 तेरी सलामती के लिए कुदरत से दुआ की है मैंने,
तू है कि हर मोड़ पर खुद से ही अलग जाती है।
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----राजेश कुमार
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-24/04/2023

©Rajesh Kumar
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