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वो रिश्ते रखना पसंद नहीं मुझे कभी जो दुनियाँ की

वो रिश्ते रखना पसंद नहीं 
मुझे कभी 
जो दुनियाँ की नजर मे
कुछ नजर आते है 
अंदरूनी कुछ 
ओर ही नजर आते है 
जीतनी तारीफ़ करूँ
उतनी कम है 
जमाने के लोगों की, 
अपनों की नजर मे गिर, गिरे के 
लोग कैसे कैसे टाइम पास 
किये जाते है 
वीर पता नहीं क्यूँ तुम्हें 
ये राज ऐ इश्क जमाने के 
बड़ी देर से समझ आते है 
सुना है लोग घर घर मे 
काम चलाते है 
अक्सर जो बाहर 
शरीफ से नजर आते है 
चाचे, ताये, मामा की 
लड़कियां पटाते है 
सच मे कैसे कैसे 
लोग है जमाने मे 
जो अपनी आशिकी के 
झंडे गाड़ जाते है 
ये वो गंदगी है जमाने की 
जिन्हें सिर्फ गंदगी 
खाने मे मजे आते है 
वीर हाल ये जमाने का 
इस कदर बताते है 
छुपता नहीं किसी से 
अक्सर जो लोग छुपाते है 
किसका किस से 
कैसा रिश्ता है 
जमाने मे समझदार इंसान 
सब समझ जाते है 
सुनकर बड़ा अजीब सा लगा 
किसी ने कहा वीर 
इस जमाने के 80 परसेंट लोग 
ऐसे ही नजर आते है 
ये वही लोग है 
जो सबसे ज्यादा 
इज्जत के बहाने बनाते है 
जिनके हर रिश्ते अंदर से 
खोखले नजर आते है 
मर जाना बेहतर है 
ऐसे कर्म करने से 
ऐसे हब्सी ज़िस्म को 
खुद ही आग लगा दो 
कम से कम 
इन खून के रिश्तों को 
जलील होने से बचा लो |वीर|

©VEER BHAN
  #हवश