हर ठोकर के बाद, गिरने से पहले ही मेरा हाथ थाम लिया आपने। बिन कुछ बोले, बिन कुछ सुने मेरे हर गम को, पहचान लिया आपने। अपके मजबूत कंधों से, हर ऊँची उड़ान दिया आपने। ज़िन्दगी के हर मोड़ पर जब मैं पड़ा अकेला, ना जाने कैसे जान लिया आपने। पकड़ाकर अपनी ऊँगली, ज़िन्दगी भर का सार दिया आपने। अपनी डांट और फटकार से भी, बस संस्कार दिया आपने। और कैसे मैं भूलूँ कि मेरी हर छोटी जरूरतों पर क्या कुछ कुर्बान किया आपने। इतना कुछ कर के भी जीवन रुपी कर्ज़ उधार दिया आपने। पा कर पिता के रूप में आपको साक्षात परमेश्वर पा लिया हमने। हर ठोकर के बाद, गिरने से पहले ही मेरा हाथ थाम लिया आपने। बिन कुछ बोले, बिन कुछ सुने मेरे हर गम को, पहचान लिया आपने। अपके मजबूत कंधों से, हर ऊँची उड़ान दिया आपने। ज़िन्दगी के हर मोड़ पर जब मैं पड़ा अकेला, ना जाने कैसे