मुद्दतों से वो रिश्तों की डोर में एक गांठ लगाता हैं हाँ वो ही इंसान दुनियाँ जिसे एक पिता बताता हैं ख़ामोशी उसकी, बेटियों को देहलीज भी पार कराता हैं विदाई के वक्त, सब से वो अपने आँसु भी छुपाता हैं यकींनन खुदगर्ज होने की जिम्मेदारियाँ क्या खूब वो निभाता हैं वो हमारी आँसु भी पोछता हैं, और वो भूख भी मिटाता हैं कौन हैं वो, हाँ वो ही, दुनियाँ जिसे एक पिता बताता हैं हमारी मुश्किलों में, वो खुद के होने का एक एहसास दिलाता हैं बेटों के साथ हर मुश्किल में वो कांधा से कांधा मिलाता हैं कौन हैं वो, हाँ वो ही, दुनियाँ जिसे एक पिता बताता हैं वो हर वक्त एक किरदार में रहता हैं, एकदम खामोश मानों जैसे, ताखों पर दिये की तरह वो एक ख्वाब सजाता हैं मेरी माँ की खुशियों में वो हर वक्त खुद को शामिल कराता हैं और तपती धूप में भी जो छाँव बनकर खड़ा रहता हैं हरकदम दुनियाँ उसे भगवान स्वरूप एक जिम्मेदार पिता बताता हैं! प्रेम_निराला_ #एक_पिता_