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ये वक़्त की डोर पक्की सी रही मोहब्बत अपनी सच्ची सी

ये वक़्त की डोर पक्की सी रही
मोहब्बत अपनी सच्ची सी रही

कीमतें सभी की देखी सभी ने
दीवार धरोंदो की कच्ची सी रही

यूँ महफूज रखा हमनें भी जिसे 
कहानी वो, एक बच्ची सी रही

किस्सा जिंदगी का ऐसे भी बढ़ा
जिससे डोर जुड़ी, रस्सी सी रही

पलटा पन्ना जिस किताब का मैंने 
जिंदगी में कस्सा-कस्सी सी रही

©WRITER AKSHITA JANGID
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