Alone 'वक़्त के हाशिए' वक़्त की अजीब फितरत है, पल पल की ख़बर पलभर में बदल जाते हैं किसी मोड़ ये राहें किस ओर मुड़ जाती हैं कभी-कभी राहें कब समझ आती हैं, इंसान भटकता है क़दम भी बहक जाते हैं, बहके बहके क़दम कभी कभी कहाँ सम्भल पाते हैं, गुनाह भी करते हैं प्रायश्चित भी करते हैं, सब समझते हैं सब नजरअंदाज कर जाते हैं, ए ज़िंदगी कभी कर बयां, वक़्त के हाशिए क्या चाहते हैं| ©अनुराग चन्द्र मिश्रा 'वक़्त के हाशिए' वक़्त की अजीब फितरत है, पल पल की ख़बर पलभर में बदल जाते हैं किसी मोड़ ये राहें किस ओर मुड़ जाती हैं कभी-कभी राहें कब समझ आती हैं, इंसान भटकता है क़दम भी बहक जाते हैं, बहके बहके क़दम कभी कभी कहाँ सम्भल पाते हैं, गुनाह भी करते हैं प्रायश्चित भी करते हैं,