चीरहरण करता दुस्सासन , फिर भी कुछ ना बोलेगी... सभा भरी है ये गूँगों से, मुख ये कैसे खोलेगी.... हे पांचाली तुझे भेड़िये, नोंच नोंचकर खाएंगे.... अपने खुद तू वस्त्र बचा, ना मधुसूदन अब आएंगे... शायद छाती चीर दुस्ट की, रक्त नहीं ला पायेगा... संभव है रणवीर भीम अब, कौरव ही कहलायेगा.... शायद अब ना ले पायेगा , बदला उन अपमानों का... अर्जुन का गांडीव नहीं, प्यासा होगा अब प्राणों का.... धर्मराज भी अब कलयुग में, कब तक धर्म बचाएगा.... फिर से किसी रोज अबला पर, चौंसर खेला जाएगा.... अंधा सिंहासन अब किंचित, जानबूझकर कर अंधा है.... नग्न हो रही नारी पर ना, लेशमात्र शर्मिंदा है..... वस्तु तुझे समझकर , तेरी बोली पुनः लगाएंगे.... अपने खुद तू वस्त्र बचा, ना मधुसूदन अब आएंगे.... अपने खुद तू वस्त्र बचा, ना मधुसूदन अब आएंगे... #चीरहरण pooja negi#