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सुपुर्द-ए-खाक हो जा। जहाँ उसका दर हो।। मिला क्या द

सुपुर्द-ए-खाक हो जा।
जहाँ उसका दर हो।।
मिला क्या दुनिया-ए जंग-मे,
अब अपना घर भी तबाह हो।
सौंप खुद को पैगम्बर को।
अब उसका ही मत हो।
छोड़ दे दुनिया-ए-वस्ल की भी।
अब वही रह गुजर हो।
सुपुर्द ए खाक हो जा, अब उसकी शरण हो।
रंजिशें ही नही, खुद को भी दे मिटा।
रख दे सर ये उस तलवार धार पर।
ये घर,ये रिश्ते,ये आसमाँ कब तक।
ये भी सब दफन हो।
हार ही हार नही,जीत भी हार है।
जो उससे बेखबर हो।
अपनी निगाहों को छोड़कर,उसी का मेहरबान बन।
सौंप खुद को उसके हाथ।
उसकी ही अब नजर हो।
सुपुर्द-ए-खाक हो जा।
जहाँ उसका दर हो।।
मिला क्या दुनिया-ए जंग-मे,
अब अपना घर भी तबाह हो।
सौंप खुद को पैगम्बर को।
अब उसका ही मत हो।
छोड़ दे दुनिया-ए-वस्ल की भी।
अब वही रह गुजर हो।
सुपुर्द ए खाक हो जा, अब उसकी शरण हो।
रंजिशें ही नही, खुद को भी दे मिटा।
रख दे सर ये उस तलवार धार पर।
ये घर,ये रिश्ते,ये आसमाँ कब तक।
ये भी सब दफन हो।
हार ही हार नही,जीत भी हार है।
जो उससे बेखबर हो।
अपनी निगाहों को छोड़कर,उसी का मेहरबान बन।
सौंप खुद को उसके हाथ।
उसकी ही अब नजर हो।