नवयौवन क्वाँरियों की बात अलग है रसिक जिनके उपनाम हीं अनारी हुए कजरारे नयन पलक की झपक, पुतली की रंगत, सुरमे की लगावट भी तलवारी हुए मुखरे की चमक उसपे चुलबुल सी चहक लबों की गर्मी भी दहनकारी हुए अधर अमृत की महिमा मंडन दीगर आशिकों के लिए लाभकारी हुए लालिमा अधर की प्रकृति प्रदत्त दोस्तों जिसके लाली से मात पनवाड़ी हुए मेंहदी तब,अब टैटू का बदन रेखाचित्रण कोमल अंग नाज़नीन के इश्तहारी हुए चाल अल्हड़ यौवन के, नजर बहके इधर-उधर उँच - नीच के कम हीं जानकारी हुए शोख अदाएं अलग, लटके झटके नासमझ कमर के लचक भी मनोहारी हुए बिनती है मगर, चलना संभल, है हिंसक शहर मजनूओं में न अब वो इमानदारी हुए माना ये फूहड़ ग़ज़ल, शास्त्रों से मगर, गुनगुना दें अगर मानो हम भी नाज़नीन के आभारी हुए 🌼 गुस्ताखी माफ़ 🌼 #श्रृंगार_खिचड़ी