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आँखें बंद कर सोचना कभी जो असहनीय था मगर फिर भी हम

आँखें बंद कर सोचना कभी
जो असहनीय था मगर फिर भी
हम सहते चले गए।
जिम्मेदारियों की गठरी उठाए हुए
चलते रहे निरंतर।
सफर में मिलते,बिछड़ते रहे लोग
मगर यादें और घाव दे गए उम्र भर के लिए।
इक फीकी हंसी आती है होंठो पर,
फिर एक टीस सी दिल में उठ जाती है
कि शायद मेरे लिए ,
कभी कुछ था ही नही!

©Drx punam rao
  #BhaagChalo