कसूर कसूर आखिर मेरा ही था जो मैंने तुमको खो दिया, ना चाहते हुएं भी उसी गलती को मैंने फ़िर से दोहराया। मना किया था तुमने कि मत करना भूले से भी कभी, पर मैं नाद़ान कर बैठा शक़ तुम पर जो नहीं करना था। कैसे यकीं दिलाऊँ कि हालात ही कुछ़ ऐसे मेरे हुएं थे, तुमको अपना बनाना था पर अब तुम्हें खो जो दिया था।